बहुत समय पहले की बात है, एक सुन्दर से गाँव के पास एक बड़ा सा पीपल का पेड़ था। उस पेड़ पर एक प्यारी सी मैना रहती थी, जिसका नाम था मीठी। वह सबको अपनी मीठी और प्यारी बोली से बहुत खुश कर देती थी। गाँव के बच्चे रोज़ सुबह उसके पास आते, वह उन्हें मधुर गीत सुनाती और सब बहुत खुश होते।
मीठी मैना के पास बहुत सारी बातें होती थीं, लेकिन सबसे खास थी उसकी मीठी ज़ुबान। वह कभी किसी से रूखा या गुस्से में बात नहीं करती थी। चाहे कोई पक्षी उसके घोंसले के पास उड़ान भरता या कोई चिड़िया उसकी शाख पर बैठ जाती – मीठी हमेशा मुस्कुराकर बात करती।
नया पड़ोसी
एक दिन उसी पेड़ पर एक काकी नाम की काली कौवा आकर रहने लगा। काकी बहुत चिड़चिड़ा था। वह हमेशा कांव-कांव करता रहता और किसी को अपने पास नहीं आने देता। अगर कोई चिड़िया गलती से उसके पास बैठ जाती, तो वह उसे डांट कर भगा देता।
मीठी ने सोचा, “शायद काकी अकेला है, इसलिए ऐसा बर्ताव करता है। क्यों न मैं उससे दोस्ती करने की कोशिश करूं?”
अगले दिन मीठी ने काकी से मीठे शब्दों में कहा,
“नमस्ते काकी जी, आपका स्वागत है हमारे पेड़ पर।”
काकी ने नाराज़ होकर कहा,
“हटाओ ये नमस्ते-वमस्ते! मुझे अकेला रहने दो!”
मीठी ने बुरा नहीं माना। वह रोज़ उसे नमस्ते कहती रही, और धीरे-धीरे उसे छोटे-छोटे फल भी देने लगी। कभी जामुन, कभी बेर, कभी रसीले आम। काकी अंदर से थोड़ा पिघलने लगा, लेकिन उसने अब तक कुछ कहा नहीं।
एक दिन की सीख
एक दिन बहुत तेज़ आंधी आई। आसमान में काले बादल छा गए और बिजली गरजने लगी। सभी पक्षी अपने-अपने घोंसलों में दुबक गए। काकी का घोंसला नया था, और तेज़ हवा में उसका एक हिस्सा उड़ गया।
काकी डर गया और मदद के लिए चिल्लाया,
“कोई है? मेरी मदद करो!”
मीठी ने उसकी आवाज़ सुनी और तुरंत उड़कर उसके पास पहुंची। उसने बाकी पक्षियों को बुलाया और सबने मिलकर पत्तों और टहनियों से उसका घोंसला ठीक किया।
काकी की आंखों में आँसू आ गए। उसने पहली बार मीठी से कहा,
“धन्यवाद मीठी… मैं हमेशा सोचता था कि दुनिया बुरी है, लेकिन तुमने मुझे गलत साबित कर दिया।”
मीठी मुस्कराई और बोली,
“जब हम दूसरों से अच्छा व्यवहार करते हैं, तो धीरे-धीरे बर्फ भी पिघल जाती है।”
अब काकी भी बदल गया था। वह दूसरों से अच्छे से बात करने लगा और बच्चों को मज़ेदार कहानियाँ सुनाने लगा। मीठी और काकी अब सबके चहेते बन गए थे।
मैना की मिसाल
गाँव के बच्चे अब मैना से सिर्फ गाना ही नहीं सुनते थे, बल्कि उससे मीठा बोलने की आदत भी सीखते थे। गाँव के बड़े भी कहते थे,
“बातें तो सब करते हैं, लेकिन मीठी बोलने का हुनर सबके पास नहीं होता।”
नैतिक शिक्षा (Moral):
मीठे बोल दिल जीत लेते हैं, गुस्से से नहीं प्यार से दोस्त बनते हैं।