🌟 कहानी का शीर्षक: “पिंकी बकरी और सच्ची बहादुरी”
बहुत समय पहले की बात है। पहाड़ों के नीचे बसा एक छोटा-सा गांव था — हरा-भरा, शांत और खुशहाल। वहीं पास ही एक छोटी-सी झोपड़ी में पिंकी नाम की एक नन्ही बकरी अपनी माँ के साथ रहती थी।
पिंकी बहुत प्यारी, सफेद रंग की, नर्म और फुर्तीली थी। लेकिन उसमें एक कमी थी — वह बहुत डरपोक थी। ज़रा सी आहट पर वह काँप जाती, किसी अनजान आवाज़ से डर जाती, और रात में तो वह खिड़की से बाहर झाँकने तक से डरती थी।
गाँव के सभी जानवर कहते,
“अरे, ये पिंकी तो एक पत्ता गिरने से भी डर जाती है!”
पिंकी उदास हो जाती लेकिन अपनी माँ से लिपटकर कहती,
“माँ, मैं क्यों इतनी डरपोक हूँ? क्या मैं कभी बहादुर बन पाऊँगी?”
उसकी माँ उसे प्यार से समझाती,
“बेटा, बहादुरी ताकत में नहीं, दिल में होती है। सही समय पर सही काम करना ही सच्ची बहादुरी है।”
🌧️ एक अंधेरी रात…
एक दिन गाँव में बहुत तेज़ आंधी और बारिश आई। बिजली चमक रही थी, पेड़ झूम रहे थे और जानवर अपने-अपने घरों में दुबक गए।
तभी एक ज़ोरदार चीख़ सुनाई दी — “बचाओ! बचाओ!”
पिंकी खिड़की से झाँकी तो देखा, पास के तालाब में चीकू खरगोश बह गया था और एक पत्थर से चिपका पड़ा था।
पिंकी का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
“अगर मैं गई तो…? नहीं! मैं डरपोक नहीं बनूँगी। मुझे जाना होगा!”
उसने जल्दी से एक लंबी रस्सी ली और बारिश में भीगती हुई तालाब की ओर दौड़ी। सब जानवर दूर से देख रहे थे, कोई भी पास नहीं जा रहा था।
पिंकी ने चीकू की तरफ रस्सी फेंकी और बोली,
“पकड़ो चीकू! मैं खींच लूँगी!”
कुछ ही पलों में पिंकी ने चीकू को बाहर खींच लिया। दोनों भीग चुके थे, लेकिन पिंकी के चेहरे पर पहली बार एक चमक थी — आत्मविश्वास की।
🌞 अगली सुबह…
सभी जानवरों ने तालियाँ बजाईं।
“वाह पिंकी! तुम तो सच्ची बहादुर निकली!”
पिंकी मुस्कराई और बोली,
“मैंने सिर्फ वही किया जो सही था। डर तो था, लेकिन दोस्त को बचाना ज़रूरी था।”
उस दिन के बाद, पिंकी सबसे लोकप्रिय और प्यारी बकरी बन गई। अब वह डरती नहीं थी, बल्कि जरूरतमंदों की मदद करने हमेशा तैयार रहती थी।
🌈 कहानी से सीख (Moral):
सच्ची बहादुरी ताकत में नहीं, सही समय पर सही काम करने की हिम्मत में होती है। डर से भागने के बजाय, उसका सामना करना ही साहस है।