बहुत समय पहले की बात है, एक हरे-भरे, खुशहाल जंगल में एक चंचल बंदर रहता था, जिसका नाम था गुल्लू। गुल्लू को खेलना-कूदना, पेड़ों पर झूलना, और दोस्तों के साथ मस्ती करना बहुत पसंद था। लेकिन अगर उसे किसी चीज़ से सबसे ज़्यादा प्यार था, तो वो था – आम!
गर्मियों का मौसम आते ही गुल्लू आम के पेड़ों के आसपास ही रहता था। वह तरह-तरह के आमों का स्वाद लेना पसंद करता था – मीठे, खट्टे, रसीले… सभी! जंगल में बहुत सारे आम के पेड़ थे, लेकिन गुल्लू हमेशा नए और खास आम की तलाश में रहता था।
एक दिन कुछ अनोखा हुआ…
गुल्लू अपनी उछल-कूद में जंगल के एक ऐसे हिस्से में पहुँच गया, जहाँ वह पहले कभी नहीं गया था। वहां उसने एक बहुत ही सुंदर और चमकदार पेड़ देखा। उस पेड़ पर लगे आम बाकी पेड़ों से बिलकुल अलग थे। वे सुनहरे रंग के थे और उनमें से हल्की सी रोशनी निकल रही थी।
गुल्लू की आँखें चमक उठीं। वह खुश होकर पेड़ पर चढ़ गया और जैसे ही उसने पहला आम तोड़ा, पेड़ से एक आवाज़ आई—
“रुको गुल्लू!”
गुल्लू चौंक गया। उसने चारों तरफ देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था।
फिर आवाज़ फिर से आई—
“मैं ही बोल रहा हूँ। मैं हूँ एक जादुई आम का पेड़।”
गुल्लू की आँखें और भी बड़ी हो गईं। पेड़ ने आगे कहा,
“मेरे फल हर किसी को नहीं मिलते। इन्हें पाने के लिए तुम्हें सच्चाई, दया और समझदारी से काम लेना होगा।”
गुल्लू थोड़ा घबरा गया, लेकिन फिर उसने हिम्मत से कहा,
“ठीक है, मैं कोशिश करूंगा।”
गुल्लू का बदलाव
अगले दिन से गुल्लू ने अपने व्यवहार में बदलाव लाना शुरू किया।
पहले, वह एक बीमार खरगोश से मिला, जो कुछ खा नहीं पा रहा था। गुल्लू ने पेड़ से कुछ फल तोड़कर उसे खाने को दिए और उसकी देखभाल की।
फिर, उसने देखा कि एक छोटा पक्षी अपना घोंसला बना रहा था लेकिन तेज़ हवा में उसकी टहनियाँ उड़ रही थीं। गुल्लू ने जल्दी से कुछ पत्ते और टहनियाँ इकट्ठा कीं और घोंसला बनाने में उसकी मदद की।
शाम को वह जंगल के पुराने रास्ते से जा रहा था, तभी उसने देखा कि एक बूढ़ा हाथी कीचड़ में फँस गया है। सारे जानवर डर रहे थे, लेकिन गुल्लू ने बाकी बंदरों को बुलाकर रस्सियाँ बनवाईं और मिलकर हाथी को बाहर निकाला।
गुल्लू की ये सभी बातें जंगल में फैल गईं। अब सभी जानवर उसे सम्मान की नज़रों से देखने लगे।
जादुई आम का इनाम
जब गुल्लू फिर से उस सुनहरे आम के पेड़ के पास पहुँचा, पेड़ मुस्कराया और बोला,
“गुल्लू, तुमने दिखा दिया कि असली ताकत दया, सच्चाई और समझदारी में होती है। अब ये सारे आम तुम्हारे हैं।”
गुल्लू ने आम खाए और उन्हें अपने दोस्तों में भी बाँट दिया। सब जानवर बहुत खुश हुए और जंगल में खुशी का माहौल छा गया।
उस दिन के बाद से गुल्लू हर किसी की मदद करता, बिना किसी स्वार्थ के। वह अब सिर्फ चंचल बंदर नहीं, बल्कि ‘बुद्धिमान गुल्लू’ कहलाने लगा।
नैतिक शिक्षा (Moral):
सच्चाई, दया और समझदारी से किया गया हर काम हमें जीवन में सबसे अनमोल फल देता है।